ध्यान:नया जन्म|| ध्यान दर्शन || ओशो
मेरे प्रिय आत्मन्!
जीवन में दो आयाम हैं, दो प्रकार के तथ्य हैं। एक तो ऐसे तथ्य हैं, जिन्हें जान लिया जाए तो ही किया जा सकता है। जानना जिनमें प्रथम है और करना द्वितीय है। जानना पहले है और करना पीछे है। दूसरे ऐसे तथ्य भी हैं जिन्हें पहले कर लिया जाए तो ही जाना जा सकता है। उनमें करना पहले है और जानना पीछे है।
विज्ञान पहले तरह का आयाम है, धर्म दूसरे तरह का।
विज्ञान में पहले जानना जरूरी है, तो ही पीछे किया जा सकता है। धर्म में पहले करना जरूरी है, तो ही पीछे जाना जा सकता है। विज्ञान में ज्ञान प्रथम और कर्म पीछे है, धर्म में कर्म प्रथम और ज्ञान पीछे है। विज्ञान बहिर्यात्रा है, बाहर के जगत के संबंध में है। धर्म अंतर्यात्रा है, भीतर के जगत के संबंध में है।
यहां हम भीतर की यात्रा के लिए इकट्ठे हुए हैं, जहां करना पहले है और जानना पीछे है। ध्यान हम करेंगे और जानने की कोशिश करेंगे। इसलिए ध्यान को पहले मैं समझाऊंगा नहीं, पहले आपको करवाऊंगा। और उस करने से ही समझ को विकसित करने की कोशिश करेंगे। इन पांच दिनों में हम करेंगे और जानने की कोशिश करेंगे।
इसे ठीक से खयाल में ले लें, आप करेंगे तो ही जान सकेंगे। और आप सोचते हों कि पहले जान लेंगे फिर करेंगे, तो आप कभी भी नहीं कर सकेंगे। कुछ है जो कि करने के पहले जा....................................
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