ध्यान के कमल:ओशो 





ध्यान: एक बड़ा दुस्साहस||ध्यान के कमल|| ओशो 


प्रश्न: सांझ आप कहते हैं कि इंद्रियों की पकड़ में जो नहीं आता वही अविनाशी है। और सुबह कहते हैं कि चारों तरफ वही हैउसका स्पर्श करेंउसे सुनें। क्या इन दोनों बातों में विरोधकंट्राडिक्शन नहीं है?

इंद्रियों की पकड़ में जो नहीं आता वही अविनाशी है। और जब मैं कहता हूं सुबह आपसे कि उसका स्पर्श करेंतो मेरा अर्थ यह नहीं है कि इंद्रियों से स्पर्श करें। इंद्रियों से तो जिसका स्पर्श होगा वह विनाशी ही होगा। लेकिन एक और भी गहरा स्पर्श है जो इंद्रियों से नहीं होताअंतःकरण से होता है। और जब मैं कहता हूंउसे सुनेंया मैं कहता हूंउसे देखेंतो वह देखना और सुनना इंद्रियों की बात नहीं है। ऐसा भी सुनना है जो इंद्रियों के बिना भीतर ही होता है। और ऐसा भी देखना है जो आंखों के बिना भीतर ही होता है। उस भीतर सुनने-देखने और स्पर्श करने की ही बात है। और यदि उसका अनुभव शुरू हो जाएतो फिर वह जो विनाशी दिखाई पड़ता है चारों ओरउसके भीतर भी अविनाशी का सूत्र अनुभव में आने लगता है।

विरोध जरा भी नहीं है। दिखाई पड़ता है। और दिखाई पड़ेगा। धर्म ............................................



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