शिव सूत्र प्रवचन 4 :ओशो
चित्त ही मंत्र है : शिव सूत्र प्रवचन 4 सूत्र 1
चित्त ही मंत्र है।
मंत्र ही अर्थ है: जो बार—बार पुनरूक्ति करने से शक्ति को अर्जित करे; जिसकी पुनरुक्ति शक्ति बन जाये। जिस विचार को भी बार—बार पुनरुक्त करेंगे, वह धीरे—धीरे आचरण बन जायेगा। जिस विचार को बार—बार दोहराएंगे, जीवन में वह प्रगट होना शुरू हो जायेगा। जो भी आप हैं, वह अनंत बार कुछ विचारों के दोहराए जाने का परिणाम है। सम्मोहन पर बड़ी खोजें हुईं। आधुनिक मनोविज्ञान ने सम्मोहन के बड़े गहरे तलों को खोजा है।
सम्मोहन की प्रक्रिया का गहरा सूत्र एक ही है कि जिस विचार को भी वस्तु में रूपांतरित करना हो, उसे जितनी बार हो सके, दोहराओ। दोहराने से उसकी लीक बन जाती है; लीक बनने से मन का वही मार्ग बन जाता है। जैसे नदी बह जाती है, अगर एक गढ़ा खोदकर राह बना दी जाये, नहर बन जाती है—वैसे ही अगर मन में एक लीक बन जाये—किसी भी विचार की तो वह विचार परिणाम में आना शुरू हो जाता है।फ्रांस में एक बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक हुआ—इमाइल कुए। उसने लाखों लोगों को केवल मंत्र के द्वारा ठीक किया। लाखों मरीज सारी दुनिया से कुए के पास पहुंचते थे। और उसका इलाज बड़ा छोटा था। वह सिर्फ मरीज को कहता था कि तुम............................................
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प्रयत्न ही साधक है : शिव सूत्र प्रवचन 4 सूत्र 2
ये सूत्र ठीक से समझना। चित्त ही मंत्र है और प्रयत्न साधक है—दूसरा सूत्र।
प्रयत्न का अर्थ है: इस चित्त के चक्र के बाहर निकलने की चेष्टा। जो निकल गया, वह सिद्ध है; जो निकलने की चेष्टा कर रहा है, वह साधक है। और महत प्रयत्न करना होगा, तभी तुम निकल पाओगे। उतना ही प्रयत्न करना होगा, जितना चित्त को बांधने में तुमने किया है। लेकिन, बड़ी कठिनाई यह है कि उसी चित्त से तुम देखते हो। इसलिए, तुम जो देखते हो, चित्त उसे अपने ही रंग में रंग देता है। यह बड़ी कठिनाई है।
मैं तुमसे बोल रहा हूं तुम सुन रहे हो; लेकिन तुम नहीं सुन रहे हो, तुम्हारा चित्त बीच में खड़ा है। मैं जो भी कहूंगा, चित्त अपना रंग उसपर फेंकेगा और उसको अपने अनुकूल बदल लेगा; उसका अर्थ बदल जायेगा। मुल्ला नसरुद्दीन शराब पिये एक बस में सवार हुआ; एक बूढ़ी औरत भी, जिसके बाल सब सफेद हो गये थे। उसे बडी दया आई। मुल्ला अभी जवान था; मुंह से शराब की बदबू आ रही थी। तो उस बूढ़ी औरत ने उससे कहा, 'बेटे, तुम्हें होश है या नहीं? तुम सीधी नरक की यात्रा पर जा रहे हो।’ मुल्ला उचककर खड़ा हो गया। उसने कहा, 'रोको भाई, मैं गलत बस में सवार हो गया हूं।’
वह जो चित्त है, अगर शराब में डूबा है तो हर चीज को अपने रंग में रंग लेगा। वे समझे कि यह बस नरक जा रही है। तुम्हारा चित्त चौबीस घंटे यही कर रहा है। इसलिए, बड़ी—से—बड़ी जटिल बात है—वह यह कि चित्त को अलग करके सुनने की चेष्टा। वही श्रावक है। वही सम्यक श्रवण है कि चित्त को तुम हटा दो और सीधा सुनो। प्रयत्न साधक है। चेष्टा करनी पड़ेगी। महत चेष्टा करनी पड़ेगी। आलस्य में पड़े रहने से तुम बाहर न हो पाओगे इस वर्तुल के। कैसे कोई पड़ा—पड़ा वर्तुल के बाहर हो पायेगा? पड़ा—पड़ा तो वर्तुल घूमता ही रहेगा, चक्र घूमता ही रहेगा और डर के कारण कि कहीं तुम गिर न जाओ, तुम उसे जोर से पकड़े रहोगे।
अगर तुमने कभी जंगल में बहेलियों को देखा है तोतों को पकड़ते तो बहेलिये बड़ी सीधी तरकीब ......................
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गुरु उपाय है, शरीर हवि है: शिव सूत्र प्रवचन 4 सूत्र 3
तीसरा सूत्र है गुरु उपाय है।
यह जो जीवन की खोज है, तुम अकेले न कर पाओगे; क्योंकि अकेले तो तुम अपने वर्तुल में बंद हो। तुम्हें उसके बाहर दिखाई भी नहीं पड़ता। उसके बाहर कुछ है, इसकी खबर भी तुम्हें नहीं है। तुम जो हो—अपनी खोल में बंद—तुम समझते हो, यही जीवन है। यह खबर तुम्हें बाहर से किसी को देनी पड़ेगी, जिसने इससे विराट जीवन को जाना हो। तुम अपने घर में कैद हो। तुम्हें पता भी नहीं कि घर के बाहर खुला आकाश है, चांद—तारे हैं। यह तो कोई जो चांद—तारों को देखकर आया हो और तुम्हें घर में दस्तक दे और कहे कि बाहर आओ, कब तक भीतर बैठे रहोगे।
पहले तो तुम यही पूछोगे कि बाहर जैसी कोई चीज भी है? यही तो लोग पूछते हैं कि परमात्मा जैसी कोई चीज है; आत्मा जैसी कोई चीज है? और तुम चाहते हो कि सिद्ध कर दे कोई घर के भीतर बैठे हुए कि आकाश है। कैसे सिद्ध करेगा? घर के भीतर बैठे, आकाश है—यह कैसे सिद्ध किया जा सकता है? तुम्हें चलना पड़ेगा साथ। वह जो कह रहा है कि आकाश है, उसके पीछे तुम्हें दो—चार कदम उठाने पड़ेंगे; क्योंकि आकाश दिखाया जा सकता है, सिद्ध नहीं किया जा सकता है; सिद्ध करने का कोई उपाय नहीं है। और, अगर कोई आकाश को सिद्ध करना चाहेगा घर के छप्पर के भीतर, तो तुम उसको हरा सकते हो; क्योंकि तुम कहोगे—कहां की बातें कर रहे हो, छप्पर है। यहां तो कुछ दिखाई नहीं पड़ता; दीवालें है। क्या प्रमाण है कि बाहर कुछ है? तुम थोड़ा—सा आकाश भीतर लाकर मुझे दिखा दो। तो आकाश कोई वस्तु तो .....................................
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शरीर हवि है। ज्ञान ही अन्न है। विद्या के संहार से स्वप्न पैदा होते है: शिव सूत्र प्रवचन 4 सूत्र 4,5&6
शरीर हवि है। और, ध्यान रखना—यह जिसे तुम शरीर कहते हो, जिसे तुमने समझ रखा है कि मैं सब कुछ इस शरीर में ही हूं—यह शरीर हवि से ज्यादा नहीं है। जैसे यश में अहित डालनी पड़ती है, ऐसे ही ध्यान में तुम्हें धीरे— धीरे इस शरीर को खो देना होगा। बाकी आहुतियां व्यर्थ हैं। कोई घी डालने से, गेहूं डालने से, कुछ हवि नहीं होती। अपने को ही डालना पड़ेगा, तभी तुम्हारी जीवन —अग्रि जलेगी। इस पूरे शरीर को दांव पर लगा देना। इसे बचाने की कोशिश की तुमने अगर, तो यह यश जलेगा ही नहीं, अत्रि पैदा ही नहीं होगी। तुम अपने पूरे शरीर को दांव पर लगा देना। शरीर हवि है।
ज्ञान ही अन्न है। और, तुम अभी तो भोजन से जीते हो। भोजन शरीर में जाता है; शरीर के लिए जरूरी है। बोध, ज्ञान, ध्यान, अवेयरनेस—वह भोजन है आला का। अभी तक तुमने शरीर को ही खिलाया—पिलाया; आत्मा तुम्हारी भूखी मर रही है। आत्मा तुम्हारी अनशन पर पड़ी है जन्मों से; शरीर परिपुष्ट हो रहा है, आत्मा भूखी मर रही है।
ज्ञान अन्न है आत्मा का। तो जितने तुम जाग्रत हो सको, ज्ञानपूर्ण हो सको—ज्ञान का मतलब पांडित्य नहीं है, ज्ञान का अर्थ है: होश—जितने तुम जाग्रत हो सको, तुरीय जितना तुममें सघन हो सके, तुम जितने होशपूर्ण और विवेकपूर्ण हो सको, उतनी ही तुम्हारी आत्मा में जीवनधारा दौड़ेगी। तुम्हारी आत्मा करीब—करीब सूख गयी है। उसको तुमने भोजन ही नहीं दिया। तुम भूल ही गये हो कि उसको भोजन की कोई जरूरत है।
शरीर तुम्हारा भोजन कर रहा है, आआ उपवासी है। इसलिए अनेक धर्मों ने उपवास का उपयोग किया। शरीर को उपवास कराना थोड़े दिन और आत्मा को भोजन दो। विपरीत करो प्रक्रिया को; लेकिन जरूरी नहीं है कि तुम शरीर को भूखा मारो। शरीर को उसकी जरूरत दो; लेकिन, तुम्हारे जीवन की सारी चेष्टा शरीर को भरने में ही पूरी न हो जाये। तुम्हारे जीवन की चेष्टा का बड़ा अंश ज्ञान को जन्माने में लगे; क्योंकि, वही तुम्हारी आत्मा का भोजन है। ज्ञान ही अन्न है।
विद्या के संहार से स्वप्न पैदा होता है। और, अगर यह ज्ञान..............................
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