शिव सूत्र प्रवचन 2 : ओशो 

                              
                                       


 जाग्रत स्‍वप्‍न और सुषुप्‍ति— इन तीनों अवस्थाओं को पृथक रूप से जानने से तुर्यावस्था का भी ज्ञान हो जाता है ज्ञान का बना रहना ही जाग्रत अवस्था है   :शिव सूत्र प्रवचन 2  सूत्र 1



जाग्रतस्‍वप्‍न और सुषुप्ति— इन तीनों अवस्थाओं को पृथक रूप से जानने से तुर्यावस्था का भी ज्ञान हो जाता है। तुर्या है— चौथी अवस्था। तुर्यावस्था का अर्थ है— परम ज्ञान।
तुर्यावस्था का अर्थ है कि किसी प्रकार का अंधकार भीतर न रह जाये, सभी ज्योतिर्मय हो उठेजरा—सा कोना भी अंतस का अंधकारपूर्ण न होकुछ भी न बचे भीतरजिसके प्रति हम जाग्रत नहीं हो गयेबाहर और भीतरसब ओर जागृति का प्रकाश फैल जाये।
अभी जहां हम हैंवहां या तो हम जाग्रत होते हैं या हम स्‍वप्‍न में होते हैं या हम सुषुप्‍ति में होते हैं। चौथे का हमें कुछ भी पता नहीं है। जब हम जाग्रत होते हैं तो बाहर का जगत तो दिखाई पड़ता हैहम खुद अंधेरे में होते हैंवस्तुएं तो दिखाई पड़ती हैंलेकिन स्वयं का कोई बोध नहीं होतासंसार तो दिखाई पड़ता हैलेकिन आत्मा की कोई प्रतीति नहीं होती। यह आधी जाग्रत अवस्था है।
जिसको हम जागरण कहते हैं— सुबह नींद से उठकर— वह अधूरा जागरण है। और अधूरा भी कीमती नहीं हैक्योंकि व्यर्थ तो दिखाई पड़ता है और सार्थक दिखाई नहीं पड़ता। कुड़ा—करकट तो दिखाई पड़ता हैहीरे अंधेरे में खो जाते हैं। खुद तो हम दिखाई नहीं पड़ते कि कौन हैं और...........................................



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विकल्प ही स्‍वप्‍न हैं  :शिव सूत्र प्रवचन 2  सूत्र 2


ज्ञान का बना रहना ही जाग्रत अवस्था है—बाहर की वस्तुओं के ज्ञान का बना रहना ही जाग्रत अवस्था है। विकल्प ही स्‍वप्‍न हैं। मन में विचारों का तंतु जाल विकल्पों काकल्पनाओं का फैलाव स्‍वप्‍न है। अविवेक अर्थात स्व—बोध का अभाव सुषुप्‍ति है।
ये तीन अवस्थाएं हैं। जिनमें हम गुजरते हैं। लेकिन जब हम एक से गुजरते है तो हम उसी के साथ एक हो जाते हैं। जब हम दूसरे में पहुचते हैतो हम दूसरे के साथ एक हो जाते है। जब हम तीसरे में पहुचते हैतो तीसरे के साथ एक हो जाते हैं। इसलिए हम तीनों को अलग—अलग नहीं देख पाते हैं। अलग देखने के लिए थोड़ा फासला चाहिएपरिप्रेक्ष्य चाहिए। अलग देखने के लिए थोडी—सी जगह चाहिए। तुम्हारेऔर जिसे तुम देखते होदोनो के बीच मे थोड़ा रिक्त स्थान चाहिए। तुम आइने में भी अगर बिलकुल सिर लगा कर खडे हो जाओतो अपना प्रतिबिंब न देख पा ओगे थोड़ी दूरी चाहिए। और तुम इतने निकट खड़े हो जाते हो—जाग्रत केस्‍वप्‍न केसुषुप्‍ति के कि तुम बिलकुल एक ही हो जाते हो। तुम उसी के रंग मे रंग जाते हो। औरयह दूसरे के रंग में रंग जाने की हमारी आदत इतनी गहन हो गयी है कि हमें पता भी नहीं चलता और इसका शोषण किया जाता है। अगर तुम हिंदू होऔर तुमसे कहा जाए कि यह मस्जिद खड़ी हैइसमें आग लगा दोतो तुम हजार बार सोचोगेविचार करोगे कि यह क्या उचित है। और मस्जिद भी उसी परमात्मा के लिए समर्पित है। ढंग होगा औरसीढ़ी का रंग होगा औररास्ते की व्यवस्था होगी और लेकिन मंजिल वही है। लेकिन हिंदुओं की एक भीड़ मस्जिद को आग लगाने जा रही होतुम इस भीड़ में होतब तुम नहीं सोचतेक्योंकि तुम भीड़ के रंग में रंग जाते हो। तब तुम मस्जिद को जला दोगे और बाद में कोई अगर तुमसे पूछेगा कि तुम यह कैसे कर सकेतो तुम सोचोगे और कह लै कि यह आश्‍चर्य है कि मैं कैसे कर सका। अकेले तुम यह न कर पाते। लेकिन..............................


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अविवेक अर्थात स्व—बोध का अभाव मायामय सुषुप्‍ति है। तीनों का भोक्ता वीरेश कहलाता है :शिव सूत्र प्रवचन 2  सूत्र 3




औरअविवेक अर्थात स्व—बोध का अभाव सुषुप्‍ति है—जहां सभी कुछ खो जाता हैकोई विवेक नहीं रह जाताकोई होश नहीं रह जाता—न बाहर का कोई होशन भीतर का कोई होशजहां तुम सिर्फ एक चट्टान की भांति हो जाते होगहन तंद्रा में। लेकिनतुम देखो कि तुम्हारा जीवन कैसा उपद्रव होगा! क्योंकि जब भी तुम गहरी तंद्रा में हो जाते होतभी सुबह उठकर तुम कहते हो कि रात बड़ी आनंददायी नींद आयी। थोड़ी देर सोचो कि तुम्हारा जीवन कैसा नरक होगा कि तुम्हें सिर्फ नींद में सुख आता है। बेहोशी में भर सुख आता हैबाकी तुम्हारा जीवन एकदम दुख ही दुख है। अच्छी नींद आ जाती है तो तुम कहते होकाफी हो गया। और नींद का अर्थ है—बेहोशी। लेकिनठीक ही हैतुम्हारे लिए काफी हो गयाक्योंकि तुम्हारी पूरी जिंदगी सिर्फ चिंतातनाव और बेचैनी के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है! उसमें तुम आराम कर लेते हो थोडी देर के लिए तो तुम समझते हो कि तुमने सब पा लियाजबकि वहां कुछ भी नहीं है।
नींद का अर्थ है: जहां कुछ भी नहीं हैन बाहर का जगत हैन भीतर का जगत हैजहां सब अंधकार में खो गया। हांलेकिनविश्राम मिल जाता है। विश्राम लेकर भी तुम क्या करोगे! सुबह तुम फिर उसी दौड़ में लगोगे। विश्राम से जो शक्ति तुम्हें मिलती हैतुम उसे नये तनाव बनाने में लगाओगेनयी चिंताएं ढालोगे। रोज तुम विश्राम करोगे और रोज तुम नई चिंताएं डालोगे। काश! तुम इतनी—सी ही बात समझ लो कि...................


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