प्रश्न: भगवान श्री, आपको समझने में आज की सरकारें और चर्च तो क्या बुद्धिजीवी भी जिस जड़ता का परिचय दे रहे हैं वह घबराने वाली है। ऐसा क्यों हुआ कि मनुष्य-जाति अपने श्रेष्ठतम फूल के साथ यह दुर्व्यवहार हुआ करे? क्या उसकी आत्मा मरी हुई है? आपके साथ पिछले दस महीनों से जो दुर्व्यवहार हुआ है, वह क्या एक किस्म का अंतर्राष्ट्रीय तल का एपारथाइड नहीं है जो साउथ अफ्रीका के एपारथाइड से भी बदतर है? क्या इस पर कुछ कहने की अनुकंपा करेंगे?
मैं एक बात इन दस महीनों में गहराई से अनुभव किया हूं और वह है, हर आदमी के चेहरे पर चढ़ा हुआ झूठा चेहरा। मैं सोचता था कुछ लोग हैं जो नाटक मंडलियों में हैं, लेकिन जो देखा है तो प्रतीत हुआ कि हर आदमी एक झूठे चेहरे के भीतर छिपा है। ये महीने कीमती थे और आदमी को देखने के लिए जरूरी थे; यह समझने को भी कि जिस आदमी के लिए मैं जीवन भर लड़ता रहा हूं, वह आदमी लड़ने के योग्य नहीं है। एक सड़ी-गली लाश है, एक अस्थिपंजर है। मुखौटे सुंदर हैं, आत्माएं बड़ी कुरूप हैं।
सारी दुनिया के विभिन्न देशों ने जिस भांति मेरा स्वागत किया है उससे बहुत से निष्कर्ष साफ हो जाते हैं। एक तो कि पश्चिम के समृद्धिशाली देश जिनके पास सब कुछ है; धन है और दौलत है, विज्ञान है, तकनीकी विकास है, आदमी की मृत्यु का पूरा सामान है। लेकिन जीवन की कोई एक भी किरण नहीं। और इस सारे भौतिक विकास ने स्वभावतः उन्हें एक गलत निष्कर्ष दे दिया है कि वे न केवल सारी दुनिया के मालिक हैं बल्कि सारी दुनिया की आत्मा के भी मालिक हैं। और पूरब के देशों से जो लोग पश्चिम जाते रहे--विवेकानंद, रामतीर्थ, योगानंद, कृष्णमूर्ति--इन सबने एक धोखा दिया और वह धोखा दोहरा था। पश्चिम को भुलावा .........................................................
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