प्रश्न : भगवान, वह कौन सी ऐसी अज्ञात शक्ति है, जो हमें आपकी तरफ खींच रही है?
जीवन में सभी कुछ अज्ञात है--वह सब भी, जो हम सोचते हैं कि ज्ञात है।
सुकरात का वचन है कि जब मैं युवा था तो सोचता था, बहुत कुछ जानता हूं। जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, जानना भी बढ़ा। लेकिन एक अनूठी घटना भी साथ-साथ, कदम से कदम मिलाते हुए चली। जितना ज्यादा जानने लगा, उतना ही अनुभव होने लगा कि कितना कम जानता हूं। और अंततः जीवन की वह घड़ी भी आई, जब मेरे पास कहने को केवल एक शब्द था कि मैं सिर्फ इतना ही जानता हूं कि कुछ भी नहीं जानता। यह सुकरात के अंतिम वचनों मग से हैं। जीवन भर की यात्रा, ज्ञान की खोज, और परिणाम एक बच्चे का भोलापन: जिसे.............................
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प्रश्न : बीस साल से आपके साथ रहते—रहते मेरा आमूल—परिवर्तन हो गया है। मैं जो पहले थी, वह अब नहीं हूं। शांति और सुख से भर गई हूं। आपकी अनुकंपा अपार है।
अब दोनों हाथ उलीचो। सुख और शांति जब तुम्हारे भीतर अनुभव हो तो कंजूसी मत करना। पुरानी आदतें हैं कि जो भी मूल्यवान है, उसे हम तिजोड़ियों में बंद कर देते हैं और सुख और शांति से ज्यादा मूल्यवान तो तुमने कुछ जाना नहीं है। यह तुम्हारा सौभाग्य है कि तुम्हारे जीवन में सुख है और शांति है। चूक न जाना। क्योंकि जितनी ऊंचाई से आदमी गिरता है, उतनी ही नीचाई में गिर जाता है। बांटो, उलीचो।
कबीर ने कहा है: दोनों हाथ उलीचिए यही सज्जन को काम। और यह बड़े मजे की बात है। क्योंकि जितना तुम उलीचते हो उतना ही तुम पाते हो कि तुम्हारे भीतर नए, स्रोत, नए झरने, नित नए अनुभव प्रकट होते चले जाते हैं।
सुख और शांति के भी ऊपर कुछ है। सुख और शांति मंजिल नहीं हैं। सुख और शांति के ऊपर ही शून्य है। और जब तक तुम सुख और शांत को उलीचने में समर्थन न हो जाओगे, तुम उस शून्यता को अनुभव न कर सकोगे, जिस शून्यता में इस जीवन के सारे रहस्य उतर आते हैं--अपने-आप, बिना बुलाए।
पुरानी कहावत है, हम मेहमान को अतिथि कहते थे। और अतिथि को ईश्वर का दर्जा देते थे। लेकिन शायद तुमने न सोचा हो कि अतिथि शब्द का अर्थ क्या होता है तिथि का अर्थ तो तारीख होता है। अतिथि का अर्थ होता है जो बिना तारीख बताए, अचानक, न मालूम किस घड़ी तुम्हारे भीतर मौजूद हो जाए। और जो अतिथि की तरह तुम्हारे भीतर मौजूद हो जाए, वही जीवन का सारत्तत्व है, वही ब्रह्मानुभव..............................
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प्रश्न: भगवान, आज जीवंत फूल की महक, सुंदरता, निजी पन, फिर से जिंदगी खिल गयी। प्लास्टिक के फूल कैसे भी हों लेकिन सुवास नहीं। यह मोह नहीं है भगवान, यह सौंदर्य बोध है। आपकी कृपा। आपका अनुग्रह।
यह सच है कि प्लास्टिक के फूलों में सुवास नहीं होती। और यह भी सच है कि प्लास्टिक के फूल मरते नहीं। जाए ही चले जाते हैं। रोज धो दो और रोज नए हो जाते हैं। असली फूल सुबह सूरज की किरणों के साथ खिलते हैं, अपनी सुवास को बिखेर देते हैं और सांझ होते-होते उनकी पंखुड़ियां धुल में मिल जाती हैं। फिर दुबारा उसी फूल से मिलना न हो सकेगा। और फूल आते रहेंगे। और फूल जाते रहेंगे।
इतना ही अगर सच होता कि असली फूलों में सुगंध होती है और प्लास्टिक के फूलों में सुगंध नहीं, तो भेद करना बहुत आसान था। बड़ी मुश्किल तो यह है कि नकली फूल बहुत जिंदा रहते हैं, बहुत देर तक टिकते हैं और असली फूल बहुत जल्दी मुरझा जाते हैं। जितना असली फूल होगा, उतने जल्दी मुरझा जाता है। क्योंकि जितना असली फूल होता है, उतना ही पूर्णता से जीता है और .............................................
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प्रश्न: भगवान, अपने आपको कैसे समझूं? कुछ समझ नहीं आता और मृत्यु का तो बहुत भय लगता है।
मृत्यु का भय किसको नहीं लगता? हर आदमी यही सोचता है कि मौत हमेशा किसी और की होती है। और उसके तर्क में कुछ बात तो है, क्योंकि अपने को तो कभी मरते नहीं देखता। हमेशा औरों को मरते देखता है। दूसरों की अर्थियों को मरघट तक पहुंचा आता है। नदी में स्नान करके प्रसन्न अपने घर लौट आता है हैरान होता हुआ कि मैं क्या अपवाद हूं। मरघट गांव के बाहर बनाए जाते हैं। बनाना चाहिए गांव के ठीक बीच में; ताकि हर आदमी रोज देखे कि कोई मर रहा है। और जो लाइन क्यू की उसने बना रखी थी, वह छोटी होती जा रही है। उसका नंबर भी अब करीब है। लेकिन हम गांव के बाहर बनाते हैं कि एक आदमी मर गया, बात भूलो, छोड़ो। कोई मरता है तो हम बच्चों को घर के भीतर खींच लेते हैं कि बच्चों को मृत्यु.......................................
प्रश्न: भगवान, आपको महसूस कर दिल पर एक मीठी चुभन सी महसूस करती हूं। आप द्वारा बरसा प्रेम मुझे आपसे बाहर कर देता है। आंसू का झरना, शरीर में कंपन, भावों का शब्दों में उतारने में असमर्थ सी हूं। मेरे स्थिति क्या है मेरे भगवान?
मत सोचो कि तुम्हारी स्थिति क्या है। क्योंकि सोचा कि स्थिति खो जाएगी। कुछ चीजें हैं जो सोचने से मिलती हैं और कुछ चीजें हैं जिनके लिए बिना सोचते छलांग लगानी पड़ती है।
कहावत है, छलांग लगाने के पहले सोच लेना चाहिए। किसी कायर ने और कमजोर ने यह कहावत रची होगी। मैं तुमसे कहता हूं, छलांग पहले लगा लो, सोचना कभी भी कर लेना। शाश्वत जीवन पड़ा है, जब दिल आए सोच लेना मगर छलांग तो लगा लो।
जो हो रहा है, ठीक हो रहा है। आनंद से शरीर कंपने लगे, भीतर एक सिहरने दौड़ जाए तुम्हारे जीवन की विद्युत-धारा सक्रिय हो उठे ये जीवन के निकट आने के लक्षण हैं। जैसे फूल के पास कोई आए और सुगंध आने लगे। मगर सोचो मत। सोचते वाले इस दुनिया में बुरी तरह गंवाते हैं। क्योंकि ये बातें सोचने की नहीं है। जब तुम्हें किसी से प्रेम हो जाता है तो क्या तुम बैठकर सोचते हो कि क्या मुझे प्रेम हो गया है? क्या यही प्रेम है? जिंदगी भर दांव पर लगाने चला हूं। और दांव कोई छोटा है, सोच तो लूं | जर्मनी का बहुत बड़ा विचारक हुआ: इमैंयुअल कांट। एक स्त्री ने उससे निवेदन किया, बहुत .................................................
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