शिव सूत्र प्रवचन 5 :ओशो 




                      आत्‍मा चित्‍त है : शिव सूत्र प्रवचन 5 सूत्र 1



आत्‍म चित्‍तमाआत्‍मा चित्‍त हैयह सूत्र अति महत्‍वपूर्ण है।
सागर में लहर दिखाई पड़ती हैलहर भी सागर है। लहर कितनी ही विक्षुब्ध होलहर कितनी ही सतह पर होउसके भीतर भी अनंत सागर है। क्षुद्र भी विराट को अपने में लिये है। कण में भी परमात्मा छिपा है।
तुम कितने ही पागल हो गये हो, तुम्हारा मन कितना ही उद्विग्र होकितने ही रोगकितनी ही व्याधियों ने तुम्हें घेरा हों—फिर भी तुम परमात्‍मा हो। इससे कोई भेद नहीं पड़ता कि तुम सोये होबेहोश होबेहोशी में भी परमात्मा ही तुम्हारे भीतर बेहोश है। सोये हुए भी परमात्मा ही तुम्हारे भीतर सो रहा है। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि तुमने बहुत पाप किये हैंबहुत पापों का विचार किया है—वे विचार भी परमात्मा ही तुम्हारे भीतर कर रहा है। वे पाप भी परमात्मा के माध्यम से ही हुए हैं।
आत्मा चित्तम् का अर्थ है कि तुम्हारा चित्त तुम्हारी आत्मा की ही एक परिणति है। यह बहुत महत्वपूर्ण है समझनाअन्यथा तुम चित्त से लड़ना शुरू कर दोगे। औरजो भी चित्त से लड़ेगावह हार जाएगा। विजय का मार्ग है.: चित्त को स्वीकार कर लेना कि वह भी परमात्मा का है। संघर्ष में भीव्यर्थ कीद्वंद्व कीद्वैत की स्थिति में भीलहर भी सागर है—इस प्रतीति के साथ ही............................



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     कला आदि तत्‍वो का अविवेक ही माया है: शिव सूत्र प्रवचन 5 सूत्र 2




कला आदि तत्वों का अविवेक ही माया है।
यह माया क्या हैफिर इस चित्त पर अंधकार क्यों हैअगर आत्मा ही चित्त हैक्यों कला आदि तत्वों का अविवेकतुम्हें पता नहीं कि कौन तुम्हारे भीतर कर्ता हैकौन है असली कलाकार भीतर तुम्हारेकौन है मौलिक तत्वउसका तुम्हें पता नहीं। औरजिसे तुम समझ रहे होकि यह कर रहा हैवह है ही नहीं। ना—कुछ को पकड़कर तुम जी रहे होइसलिए परेशान हो। पूरी जिंदगी दौड़धूप करके भी परेशानी नहीं मिटतीसिर्फ बढ़ती है और पूरी जिंदगी श्रम करके भी आनंद की एक बूंद भी नहीं मिलतीसिर्फ दुख के पहाड बड़े हो जाते हैं। फिर भी आदमी आखिरी दम तक व्यर्थ के पीछे दौड़ता रहता है।
आखिर व्यर्थ में इतना रस क्यों हैसमझने की कोशिश करें। व्यर्थ की एक खूबी है—
एक आदमी ने एक नया बंगला खरीदा। बगीचा लगाया। फूल के बीज बोये। पौधे भी आने शुरू हुए लेकिन साथ—साथ घास—पात भी उग गया। वह थोड़ा चिंतित हुआ। उसने पड़ोसी नसरुद्दीन से पूछा कि कैसे पहचाना जाए कि क्या घास—पात है और क्या असली पौधा है। नसरुद्दीन ने कहा, 'सीधी तरकीब हैदोनों को उखाड़ लो। जो फिर से उग आयेवह घास—पात है।
व्यर्थ की यह खूबी है—उखाड़ोउखाड़ने से कुछ नहीं मिटता। उखाड़ने में सार्थक तो खो जाएगाव्यर्थ फिर उग आयेगा। सार्थक को बोओतब भी पका नहीं कि फसल काट पाओगेक्योंकि हजार बाधाएं हैं। व्यर्थ को बोओ ही मत तो भी फसल काटोगेउखाड—उखाडकर फेंको कि और—और उग आएगा।
व्यर्थ को बनाने में श्रम नहीं करना पड़तासार्थक को बनाने में 


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 मोह आवरण से युक्‍त को सिद्धियां तो फलित हो जाती है। लेकिन आत्‍मज्ञान नहीं होता है: शिव सूत्र प्रवचन 5 सूत्र 3



ह सूत्र कहता है: मोह—आवरण से युक्त योगी को सिद्धियां तो फलित हो जाती हैलेकिन आत्मज्ञान नहीं होता। मोह का आवरण इतना घना है कि अगर तुम धर्म की तरफ भी जाते हो तुम चमत्कार खोजते हो वहां भी।
वहां भी अगर बुद्ध खडे हों तो न पहचान सकोगे। तुम सत्य साई बाबा को पहचानोगे। अगर बुद्ध और 'सत्य साईं बाबादोनों खड़े हों तो तुम सत्य साईं बाबा के पास जाओगेबुद्ध के पास नहीं। क्योंकि बुद्ध ऐसी मूढ़ता नहीं करेंगे कि तुम्हें ताबीज देंहाथ से राख गिराए बुद्ध कोई मदारी नहीं हैं। लेकिन तुम मदारियों की तलाश में हो। तुम चमत्कार से प्रभावित होते होक्योंकि तुम्हारी गहरी आकांक्षावासना परमात्मा की नहीं हैतुम्हारी गहरी वासना संसार की है।
जहां तुम चमत्कार देखते होवहां लगता है कि यहां कोई गुरु है। यहां आशा बंधती है कि वासना पूरी होगी। जो गुरु हाथ से ताबीज निकाल सकता हैवह चाहे तो कोहिनूर भी निकाल सकता हैबस गुरु के चरणों मेंसेवा में लग जाने की जरूरत हैआज नहीं कल कोहिनूर भी मिलेगा। क्या फर्क पड़ता है गुरु को—ताबीज निकालाकोहिनूर भी निकल सकता है। कोहिनूर की तुम्हारी आकांक्षा है। कोहिनूर के लिए छोटे—छोटे लोग ही नहींबड़े—से—बड़े लोग भी चोर होने को तैयार हैं। जिस आदमी के हाथ से राख गिर सकती है सुनने सेवह चाहे तो तुम्हें अमरत्व प्रदान कर सकता हैबस केवल गुरु—सेवा की जरूरत है!
नहींबुद्ध से तुम वंचित रह जाओगेक्योंकिवहां कोई चमत्कार घटित नहीं .....................


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     स्‍थाई रूप से मोह जय होने पर सहज विद्या फलित होती है। ऐसे जाग्रत योगी को, सारा जगत मेरी ही किरणों का प्रस्‍फुरण हैऐसा बोध होता है: शिव सूत्र प्रवचन 5 सूत्र 4




  
स्थायी रूप से मोह जय होने पर सहज विद्या फलित होती है।
स्थायी रूप से मोह जय होने पर सहज विद्या फलित होती है—मोह को जय करना है। मोह का क्या अर्थ हैमोह का अर्थ है. दूसरे के बिना मैं न जी सकूंगादूसरा मेरा केंद्र है।
तुमने बच्चों की कहानियां पढ़ी होंगीजिनमें कोई राजा होता है और जिसके प्राण किसी पक्षी मेंतोते मेंमैना में बंद होते हैं। तुम उस राजा को मारोन मार पाओगे। गोली आरपार निकल जाएगीराजा जिंदा रहेगा। तीर छिद जएगा हृदय मेंराजा मरेगा न्हीं। जहर पिला दोकोई असर न होगा। राजा जीवित रहेगा। तुम्हें पता लगाना पड़ेगा उस तोते कामैना काजिसमें उसके प्राण बैद हैं। उसे तुम मरोड़ दोउसकी तुम गर्दन तोड़ दो—उधर राजा मर जाएगा। ये बच्चों कि कहानियां बड़ी अर्थपूर्ण हैंबूढ़ी के भी समझने योग्य हैं।
मोह का अर्थ है तुम अपने में नहीं जीतेकिसी और चीज में जीते हो। समझोकिसी का मोह तिजोरी में है। तुम उसकी गर्दन मरोड़ दोवह न मरेगा। तुम तिजोरी लूट लौवह मर गया। उनके प्राण तिजोरी में थे। उनका —बैंक..बैलेंस खो जाये—वे मर गये। उन्हें तुम मारोवे मरनेवाले नहीं। जहर पिलाओ—वे जिंदा रहेंगे।
मोह का अर्थ है. तुमने अपने प्राण अपने से हटाकर कहीं और रख दिये हैं। किसी ने अपने बेटे में रख दिये हैंकिसी ने अपनी पत्नी में रख दिये हैंकिसी ने धन में रख दिये हैंकिसी ने पद में रख दिये




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